रस्सी का टुकड़ा
मोपासाँ फ्रांस की थी . उनका जन्म 1850 मे मृतू 1893 मे हुआ था | 1870 -90 इतने दशक के बीच में उन्होंने लगभग 300 कहानियां उपन्यास दिन यात्रा पुस्तकें और कविता की एक पुस्तक भी प्रकाशित हुई कहानी विद्या को आधुनिक रूप से देखने में उनका स्मरणीय योगदान है | उन्होंने अपने लेखन में बुजुर्गों समाज के चरित्रों को व्रत किया था| मानव जीवन की गहराइयों को अभिव्यक्त से करने वाला मोपासाँपलटी खाने योग्य की सीमाएं का अतिक्रमण करता हुआ हमारा वर्तमान के लिए भी उतना प्रासंगिक और चुनौतीपूर्ण है|
Rasshi Ka Tukda Sarans
गोदरविल जानेवाला सड़क पर किसानों और उनकी पत्नियां का सैलाब उमड़ पड़ा था । ये उन सब नगर की ओर जा रहे थे क्योंकि आज सप्ताहिक का दिन है पुरुष धीरे धीरे चलते रहे थे उनका शरीर झुका हुआ उनका कंधा बंधा हुआ कुछ उठा हुआ और टांगे एक ही हुई थी| कड़ी मेहनत से खेतों में उनका ढांचा बिगाड़ दिया था । उनकी नीला रंग का कमीज पर कसकर माल लगा गया था जो धूप पड़ने से चमक रही थी और गन्ने का पर सफेद कढ़ाई वाले कमीज बाढ़ की वजह से इस से फूली हुई थी कि जैसे गुबारा होने के लिए तैयार हो गया है| हर एक मुबारिक में एक ऐसे ही सिर दुआ है और पैर निकलते हैं|
रस्सी का टुकड़ा कहानी
कुछ लोग गाय के बछड़े को रस्सी पकड़कर चलते रहते हैं और उनकी पीछे पीछे चली रहती है उनकी निडिया डंडे से पशु को हागते रहती है उनके साथ बड़ी-बड़ी टोकरिया में भी मुर्गी मुर्गी अब तक जाग रही थी| गोदर भील के चौराहे पर लोगों की भीड़ लगी हुई थी जानवर और इंसान से मिले मिले हुए थे जानवर के सीन अमीर किसान की बड़ी-बड़ी टोपियां और महिला के स्कार्फ दूर से ही नजर आ रहा था ? वहां पर कब माहौल कोलाहल पूरे था जिसमें कई किसान की हंसी और 28 गुजरे उठे थे फिर भी किसी दीवार के साथ बंधी गाय तरफ रवाना सुनाई दे रहे थे ?वह जल्दी से धीरे-धीरे सड़क पर रही थी शोर-शराबे बड़ी भीड़ में खो गया जो खरीद-फरोख्त और घंटों चलाने वाली मोलतोल करने वाले व्यस्त थी ? लंबी लंबी मेजों पर बैठने वालों की दूसरी तरफ बड़ा शोर हो रहा था जिससे दाहिने और वाहिनी और बैठे लोगों की पीठ गर्म आ रही थी और वहां पर तीन बड़ी-बड़ी सीखो पर है कबूतर मुर्गे और भेड़ बकरी रानी भूली जा रही थी और भूले हुए मां तथा गाड़ी सुर्वे की महक से कारखानों के दिल मचल रहे थे और उन सब के मुंह में पानी आ रहा था?
उसने पूछा? क्या ब्रोत के रहने वाला मैत्र होसेकम यहां पर मजदूर है ? मेज के दूसरे सिरे पर बैठे मैं तेरे मैत्र होशेकम ने जवाब दिया हा .. मई .. यह हु अफसर ने कहा मैत्र होसेकम क्या आप मेरे साथ मेयर के कार्यकाल में मैं चलने की हद मत उठाएंगे क्या मैं आप से बात करना चाहते हैं। किसान परेशान हो उठा। उसने गिलास एक घुंटे में खाली किया और उठ कर चल दिया ?घड़ी की वजह से वह सुबह से भी ज्यादा झुक गया था और वह बार-बार दोहरा रहा था। हां. हां.. मैं चल रहा हूं.. मैं चल रहा हूं…मेयर हस्त वाली कुर्सी पर बैठा उसका इंतजार कर रहा था। वह इस इलाके का नोटरी भी था। वह एक मोटा और गंभीर इंसान था जिससे भारी भरकम शब्द बोलने की आदत थी| उसने कहा… मैत्र होसेकम आज सुबह आपको बेंजेबल जाने वाली सड़क पर मानवील के मैत्र फूल भरे का गिरा हुआ बटुआ उठाते हुए देखा था ।
Rasshi Ka Tukda Sarans Hindi
यह खबर आगे की तरह चारों ओर फैल गई थी। जैसे ही मेयर के दफ्तर से निकला तो 1 लोगों की भीड़ में बुड्ढे आदमी को घेर लिया और उस तरह तरह के सवाल करने लगे उसने रस्सी के टुकड़े वाली कहानी सुनाने लेकिन किसी ने उस पर यकीन नहीं किया। उस पर लोग हंसते लगे ? जगह जगह पर पहचान जान वाले मिलने और वह सब को एक ही बात बताता। सबको अपनी जेब उलट कर दिखाता और यह साबित करने के लिए कि उसके पास कुछ नहीं है?और वह कहते है ‘’ बुढ़ापे में ऐसा करते शर्म नहीं आती चले जाओ यहां से|गुस्सा बढ़ता जा रहा था उसका । वापस लौटा उसने। तीन पड़ोसियों के साथ है लौटने लगा हुआ रास्ते में रुक गए उसने वह जगह दिखाइए जहां से उसने रस्सी का टुकड़ा उठाया पूरे रास्ते हुआ अपनी कहानी सुना दे रहा| रात में उसने पूरी गांव में घूम कर सबको यह कहानी सुनाने सुनाई लेकिन किसी ने उस पर यकीन करने के लिए तैयार नहीं था| वह रात भर बेचैन रहावह सारा दिन अपना रिश्ता लोगों को सुनाता रहा| कभी वह बड़ी सड़क से गुजरने वाले लोगों को पकड़ता तो कभी मक्खियां आने में बैठने वाले लोगों को कभी गिरजाघर के से आ रहे हैं लोगों को| अजनबी यों को रुक रुक कर उसने इसके बारे में बताता है|अगले सप्ताह मंगल को यह गोदरविल के बाजार में गया था |